Wednesday, October 14, 2009

दिन के लंबे सफर से लौटा हूँ…
धूप की गिन्नियों को चुन चुन कर…
रात के जिस्म को सजाऊंगा…
शाम ठहरी है दरमियां कबसे…!!!

Wednesday, October 7, 2009

आँख में डूब कर कभी देखो...
लफ़्ज़ की मोतियाँ चमकती हैं...!!!

रिम झिम सी एक सोच...

कब तक रखूं ख़ुद को बंद
AC की ठंडी घुटन में
बाहर निकलूँ, देखूँ तो
पत्ते फिर से हरे हुए हैं
बारिश की बूंदों को फिर...
चुप्पी साध के सुनूँ ज़रा...
इनमें भी कुछ गीत छुपे हैं...
भीग के पूरा बारिश में...
बदन नया लेकर ही लौटूं...!!!!