Wednesday, October 7, 2009

रिम झिम सी एक सोच...

कब तक रखूं ख़ुद को बंद
AC की ठंडी घुटन में
बाहर निकलूँ, देखूँ तो
पत्ते फिर से हरे हुए हैं
बारिश की बूंदों को फिर...
चुप्पी साध के सुनूँ ज़रा...
इनमें भी कुछ गीत छुपे हैं...
भीग के पूरा बारिश में...
बदन नया लेकर ही लौटूं...!!!!

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